यूक्रेन-रशिया के बीच युद्ध हो क्यों रहा है? रूस के आगे कैसे बेबस हो गई दुनिया

 रूस ने यूक्रेन के ऊपर हमला कर दिया है. दोनों के बीच जोरदार जंग जारी है.



क्या है रूस-यूक्रेन विवाद? 

गौरतलब है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिली थी. यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है. एक तरफ इस देश में बेहद उपजाऊ मैदानी इलाका है, वहीं दूसरी तरफ पूर्व की तरफ इस देश में कई बड़े उद्योग हैं. यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से का यूरोपीय पड़ोसियों खासकर पोलैंड से गहरा रिश्ता . यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल है. हालांकि यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यकों की संख्या भी अच्छी खासी है और ये लोग विकसित पूर्वी इलाके में ज्यादा मौजूद हैं. साल 2014 में रूस की ओर झुकाव रखने वाले यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के खिलाफ यूक्रेन की सरकार में विद्रोह होने लगा था. रूस ने इस मौके का फायदा उठाया और यूक्रेन में मौजूद क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर डाला था और यहां मौजूद विद्रोही गुटों ने पूर्वी यूक्रेन के हिस्सों पर कब्जा कर लिया.  यूक्रेन में हुए आंदोलनों के चलते राष्ट्रपति विक्टर को अपना पद छोड़ना पड़ा लेकिन तब तक रूस क्रीमिया का अपने साथ विलय कर चुका था. इस घटना के बाद से ही यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश में जुटा है लेकिन रूस लगातार इसके खिलाफ रहा है. यही वजह है कि यूक्रेन, रूस और  पश्चिमी देशों की खींचतान के बीच फंसा हुआ है.   


वर्ष 1991 में हुआ ता सोवियत संघ का विघटन

पुतिन को 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद से रूस की शक्ति और प्रभाव के नुकसान से गहरी शिकायत है. यूक्रेन पहले सोवियत संघ का हिस्सा था, लेकिन 1991 में उसने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की.

वर्ष 2008 में NATO देशों ने ये निर्णय लिया था कि वो यूक्रेन को अपने सैन्य संगठन में शामिल करने पर विचार कर सकते हैं. तब इसके लिए एक समिति का भी गठन किया गया था. उस समय रशिया की तरफ़ से यूक्रेन पर इतना दबाव बनाया गया कि उसे इस समझौते से पीछे हटना पड़ा और तब ये डील नहीं हो पाई


रूस करता है यूक्रेन की कोशिश का विरोध

NATO देश इस सिद्धांत को मानते हैं कि अगर उनके किसी मित्र देश पर कोई दूसरा राष्ट्र हमला करता है तो ये हमला सभी NATO देशों पर माना जाएगा और ये सारे देश, उस राष्ट्र के ख़िलाफ़ मिल कर लड़ेंगे. यानी अगर यूक्रेन NATO का सदस्य होता तो इन देशों को अपनी सेनाएं यूक्रेन में भेजनी ही पड़ती. रशिया इसी वजह से यूक्रेन के NATO देशों के साथ जाने का विरोध करता है.


यूक्रेन का नाटो सदस्य बनने के खिलाफ है रूस

रूस अमेरिका और नाटो (NATO) से इस बात की गारंटी भी चाहता था कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य न बनाया जाए लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देश इस बात के लिए राजी नहीं हैं. रूस ये नहीं चाहता था कि उसकी सीमा के पास तक नाटो सैनिकों की पहुंच हो. यूक्रेन पर हमला करने से पहले रूस पिछले कई दिनों से सीमा के पास भारी संख्या में अपने सैनिकों को जमावड़ा लगाया हुआ था. रूस का कहना है कि यूक्रेन की वजह से अमेरिका (America) और नाटो के मेंबर वाले देश उसकी सीमा के नजदीक पैठ बनाना चाहते हैं.

साल 2014 में रूस ने क्रीमिया पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था. इसके कुछ ही वक्त के बाद यूक्रेन के डोनत्स्क और लुहांस्क में रूस समर्थक अलगाववादियों ने इन क्षेत्रों को स्वायत्त घोषित कर दिया. फ्रांस और जर्मनी ने इन क्षेत्रों को स्वायत्त घोषित करने के लिए यूक्रेन और रूस में समझौता भी हुआ लेकिन टकराव बना रहा.

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